Holika Dahan ki jankari hindi me

बुरा न मानो holi है
Holi की पिचकारी

Happy Holi
Holi

होलिका दहन
     India में होलि का त्योहार बड़ी धाम धूम से मनाया जाता है। फागुन के महीने में प्रर्णिमा के दिन होली का दहन का आयोजन किया जाता है। Holi के दुदरे दिन यानिकी होली के बाद धुलेटी का त्योहार मनाया जाता है।
           हिंदु शास्त्रों अनुसार हिरण्यकश्यप असुरों का राजा थे।उसको एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद की माता का नाम कयाधु था।प्रहलाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त थे।प्रहलाद की ये भक्ति हिरण्यकश्यप को बिलकूल पसंद नहीं थी।उसने प्रहलाद को कई बार भगवान Lord Vishnu कीभक्ति न करने को कहा लेकिन प्रहलाद ने पिताजी की एक न सुनी।हिरण्यकश्यप बहूत क्रोधित होकर प्रहलाद को मारने की तरकीब सोचने लगे।पहले तो उसने पागल हाथी को प्रहलाद पर छोड़ दिया।पर कौतुक हुआ हाथी ने प्रहलाद की ओर डोट लगाई।पर जब वह प्रहलाद के पास पहुंचा तो उसका पागलपन गायब हो गया।हाथी शांत होकर प्रह्लादजी के पास बैठ गया।
     प्रहलाद पागल हाथी से बच गया है ये khabar सुनके हिरण्यकश्यप बहूत व्यथित हो गया।उसने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रहलाद को मारने की दूसरी तरकीब  ढूंढ निकाली।
        एक दिन होलिका प्रहलाद को साथ लेकर लकड़ियों की चिता पर बैठ गई।चिता को आग लगाई गई।होलिका के पास एक चूनरी थी कि जो उस  चूनरी को अपने शरीर पर लपेटले तो उनको आग अग्नि कोई नुकसान नहीं पहुंच पाती।चिता की आग ने विकराल रूप धारण कर लिया।होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठी थी।चूनरी उसने अपने शरीर पर लपेटी हुई थी।प्रहलादजी ने भगवान का स्मरण किया।पवन देव ने चूनरी को होलिका के शरीर से उठाकर प्रहलादजी को लपेट दीं। होलिका चिता में जलकर भस्म हो गई और प्रहलादजी बच गए।बस उस दिन की याद में होलिका दहन मनाया जाने लगा।होलिका दहन अनिष्ट पर अच्छाई कि विजय के रूप में मनाया जाता है।

           होली रंगो का त्योहार है।छोटे मोटे सब रंगारंग कार्यक्रम में सामिल होते है।अबिल गुलाल और कई जात के फूल और विविध प्रकार के रंगो को पानी में मिलाकर घोलकर पसंदीदा colour का पानी बाल्दी में भरकर पिचकारियों से एक दूसरे को रंगों की बोसार की जाती है।अब तो कई जातकी पिचकारी आती है। दूर से ही लोग एक दूसरे को रंग उडाते है।बच्चे के लिये अलग प्रकार की पिचकारी आती है जिसे बच्चे खम्भे में पिचकारी Tub के जिसमें colourful पानी भरा होता है वो लटकाते है ।फिर उसमें एक pump आता है उनसे हवा भरी जाती है।पिचकारियों का दंडा हाथों में लेकर घूमते हैं। पिचकारी में एक liver आता है जिसको दबाने से रंगों की तेज बोसार होती है। बच्चे बड़ी मौज मस्ती करते ऐक दूसरे को रंग छिड़कते है।
        बुरा न मानो होली है।
      होली के दिन चाहे किसी को भी रंग उड़ाओ तो कोई भी बुरा नहीं मानते ।इसलिए सब रंग छिड़कते छिड़कते छिड़कते बोलते हैं।" बुरा न मानो होली है।सभी मौज मस्ती करतें हुए रंगों का त्योहार होली का आनंद उठाते हैं।होली रंगों की जोली भरके आती है।होली के दिन देवर-भाभी का विसेष त्योहार है।उसदिन देवर अपनी भाभी या चचेरी भाभी को रंगों से रंग देते है।मस्ति मैं कभी कभी कीचड़ गोबर भी सीडकते है और भाभी को बहूत परेशान करते हैं।पर भाभीजी बुरा नहीं मानती चूंकि आज होली है।बूरा न मानो होली है।
       गाँव और शहरों में आजभी बड़ी धूमधाम से होलिका दहन किया जाता है।गांवों में बच्चे इकठे होकर पूरे गांव से गोबर के छाने और लकड़ियां मांग कर इकठी करते है।गांव के बाहर गांव के गोंदरे में चिता रचाई जाती है।चिता के निचे मिट्टी की मटकी मुकी जाती है।मटकी में अनाज धन धान्य, चने आदि मुकने के बाद पानी से भरदी जाती है।फिर चिता ,जिसको लोग होली कहते है, उसको प्रगटाई जाती है।पूरे गांव के लोग होलिका दहन के दर्शन करने जाते है।मान्यता है कि होली की अग्नि का ताप लेने से रोग नष्ट होते है। नवजात शिशुओं को उनके माता पिता और femily के लोग कांख में लिए,पानी की धारा करते हुए होली की प्रदक्षिणा करते है और Holi की अग्नि में मक्का कि धानी, पौआ,खजूर आदि श्रीफल के साथ होमा जाता है।
         होली के दूसरे दिन धुलेटी के दिन सुबह में सब लोग होलिका दहन के स्थान पर जाते है।होलिका दहन में जो मटकी रखी गई थी उनको भस्म से निकालते है।मटकी में रखा हुआ धान अच्छे से पकजाय तो आनेवाला साल बारिस अच्छी होगी और किसानों की फसलें अच्छी होती है।गांव के सब लोग मटकी में पक्के हुए गेंहू, बाजरा, जुवार इत्यादि खाते है।गांव के लोग उसे घूघरी कहते हैं।
    धुलेटी के दिन भी सभी लोग रंगोत्सव मनाते है और खुशियां मनाते है।खेलैया holi हे holi है बुरा न मानो holi है बोलते हुए एक दूसरे को रंग छिडकते है।
       Holi का festival हम सब को ये शिख देता है कि हंमेशा सत्य और अच्छाई की जीत होती है।बुराई और असत्य की हंमेशा हार होती है।इसलिए हमें सदैव सत्कार्य करतें रहनचाहिए।

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